जुलाई-२००३
यह जुलाई माह का तीसरा सप्ताह है .मतलब कि सभी महाविद्यालयों(colleges) में एडमिशन शुरू हो चुकें हैं .वे सभी किशोर जिन्होंने इस साल १२ वीं कि परीक्षा पास कर ली है,महाविद्यालयों में एडमिशन लेने के लिए कई विद्यालयों में आवेदन कर रहें हैं.अधिकांश विद्यार्थीं ऐसे है जो बी.टेक या इंजीनियरिग में एडमिशन ले चुकें हैं.वो बात अलग है कि किसी को योग्यता के आधार पर प्रवेश-परीक्षा पास कर लेने पर अच्छी रेंक लेन पर मिला है तो किसी को अपने पिता के वित्तीय-व्यवस्था के आधार पर मिला है.तो किसी ने यह सुविधा जातीय -आरक्षण के आधार पर पा ली है .मगर कुछ ऐसे भी विद्यार्थीं हैं जो करना तो इंजीनियरिंग ही चाहते थे मगर उन के पास सिर्फ पहला ही विकल्प था -योग्यता .योग्यता कि भी सीमा समाप्त तब हो जाती है जब सीटें फुल हो जातीं हैं.इन का कोई आरक्षण नहीं होता,इन का बाप चाहें तिवारी-पान भण्डार का मालिक है या पांडे चाय -स्टाल का .मगर ये किसी भी लाभ की श्रेणी में नहीं आते.इसी लिए इन्हों ने B.A. या B.Sc. करने का मन बना लिया है .मगर सभी छात्र इसे नहीं किसी ने अपनी सुविधा और अभी रूचि के कारण भी ये विकल्प चुनें हैं .
धर्मसमाज महाविद्यालय का विशाल प्रांगण ,जिसे देख कर स्कूल से पास-आउट हुए नव-युवा छात्र को बड़ी ही सुन्दर अनुभूति होती है.मुख्या द्वार से प्रवेश करते ही एक सुन्दर-सा पार्क जिसके चरों तरफ एक चार-दिवारी खिची है.जिस के मध्य में गाँधी जी की सफ़ेद रंग से पुती हुई एक प्रतिमा विराजमान है.पार्क में सुन्दर घास उगी हुई है.चारों तरफ दिवार के किनारे-किनारे गुलाब के पौधे लगे हें हैं .जिन पर लाल -लाल रंग के गुलाब खिलें हुए हैं.पार्क कि सीमा से लगभग ३० फीट कि दुरी पर महाविद्यालय का मुख्यालय है जिस कि शानदार एतिहासिक इमारत विद्यालय के मुख्या द्वार के सामने से गुजरने वाले किसी भी व्यक्ति या छात्र को अपनी और आकर्षित करती है .
प्रवेश की अंतिम तिथि ३१ जुलाई है, इस लिए प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्रों का जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा है .नए-नए चेहरों का आगमन हो रहा है .इंटर कालेजों या स्कूलों में सह्युगल (प्रेमी-जोड़े) शायद ही देखने को मिलें मगर यहाँ यह आम बात है.कुछ लड़के जो पहले से ही इस विद्यालय में अध्यन कर रहें हैं,वे बड़ी ही शान से अपनी मित्र मंडली के साथ स्वछंदता से विचरण कर रहें हैं .यद्यपि इन की कक्षाएं अभी शुरू भी नहीं हुई हैं ,मगर इन की चिंताएं शुरू हो चुकी हैं कि आने वाले महाविद्यालयी चुनावों में उन का मित्र सफल होगा कि नहीं ,क्यों कि वह सफल होगा तभी तो उन्हें पार्टी और सेलिब्रेसन एन्जॉय करने का मौका मिलेगा.और फिर उसी के आधार पर उन की तूती बुलती है.भाई बुले भी क्यों न छात्र नेता के मित्र जो हैं.मगर इन्हें पार्टी बदलते भी देर नहीं लगती. जो जीता वही सिकंदर -और हम उस के बन्दर .इसी चुनावी रण-नीति के तहत वे सब नए छात्रों के लिए एक सहायता शिविर लगाये हुए हैं.जिस में वे नए छात्र-छात्राओं की किसी भी प्रकार की सहायता करने के लिए तत्पर हैं.विशेष कर छात्राओं की. इन को मालुम है की किस प्रकार से एप्लीकेशन को फटाफट यानि त्वरित गति से बाबु तक सीधा पहुँचाया जाता है .इन की इसी त्वरित प्रणाली को देख कर एसा लगता है की यदि देश की बैग-डोर इन के हाथ में थमा दी जाये तो देश का कल्याण हो जायेगा.
हम वहीँ खड़े है जहाँ एडमिशन के लिए एप्लीकेशंस जमा होती है .छात्रों की अलग लाइन लगी है और छात्राओं की अलग .लाइन काफी लम्बी-लम्बी हैं .सभी प्रवेशार्थी अपनी बारी का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहें हैं.मगर लाइन है की बढ़ने का नाम ही नहीं ले रही है.
"यह कम्पूटर ने भी समय को काम करने की बजाय,ज्यादा खींचना शुरू कर दिया है .क्यों की बाबू लोगों को कम्पूटर चलाना ही नहीं आता.और बेचारे वृद्ध भी हो चुके हैं-कम्पूटर सीखने के लिए.ये बेचारे अभी तक कंप्यूटर को कम्पूटर ही उच्चारित करतें है."माफ़ करना ये मैं नहीं अपितु लाइन में पीछे खड़े छात्र आपस में गप-शाप कर रहें हैं.सभी जैसे -तैसे गप्पें मार कर टाइम पास कर रहें हैं.कि तभी महाविद्यालय के प्रांगण में "प्रवेश-निषेध क्षेत्र में बड़ी- सी , शानदार काली कार का प्रवेश होता है.कार रुकी और उस कि खिड़की खुली -और एक युवती ने अपनी टांग खिड़की से बाहर निकाली.फिर सावधानी से संभलते हुए बाहर निकली.बाहर कदम रखते ही उस ने अपने बालों को संभाला.काला चश्मा पहना.और खिड़की को बड़े ही प्यारे-से अंदाज़ में बंद किया .